चंद्रशेखर आजाद नगर। आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले चंद्रशेखर आजाद की जन्मभूमि सालों से दोनों प्रमुख दलों के लिए राजनीति करने का कें द्र रही है। आजाद की जन्मस्थली पर देश की कई नामचीन हस्तियां आईं, विकास के बड़े-बड़े वादे हुए, मगर धरातल पर काम नहीं हुआ। शहीद की नगरी आज भी पिछड़ेपन से आजाद नहीं हो पाई है।
तत्कालीन भाजपा सरकार के समय यहां आजाद स्मृति मंदिर बनाया गया था। यहां शहीद की याद दिलाने वाली तस्वीरें अक्सर जमीन पर पड़ी नजर आती हैं। आजाद की स्मृति को सहेजकर रखने के लिए कोई ठोस योजना नहीं बनी। इसी प्रकार बस स्टैंड पर आजाद के परिचय वाला एक शिलालेख लगाया गया था, जो बाहर से आने वाले लोगों को आजाद का संक्षिप्त परिचय देता था। यह भी अतिक्रमण की आड़ में गुम हो गया। पहले आजाद के शहादत दिवस पर 7 दिन के मेले का आयोजन ग्राम पंचायत द्वारा कि या जाता था, वह भी अब संक्षिप्त होकर करीब एक दशक से मात्र दो घंटे का रह गया है।
घोषणाएं तो करोड़ों की, लेकिन कोई काम नहीं
शहीद की जन्मस्थली के लिए घोषणाएं तो करोड़ों रुपये की हुईं, लेकिन धरातल पर काम शून्य ही रहा। आजाद नगर में प्रवेश करते ही सड़क धूल और गड्ढों से पटी मिलती है। आजाद के नाम पर के वल नगर की ओर जाने वाली सड़क पर आजाद द्वार बना हुआ है। इसके अलावा आजाद मैदान में शहीद की प्रतिमा है, जिसके पास अक्सर शराब की बोतलें ओर सिगरेट पड़ी हुई मिलती हैं। बाहर बस स्टैंड के पास गंदगी से सनी पड़ी नदी है, जिसकी सुध प्रशासन ने कभी नहीं ली। आजादी के वर्षों बाद आज भी युवाओं के लिए खेल मैदान नहीं है जबकि शहीद आजाद बचपन में तीरंदाजी में माहिर थे।
सब्जी मंडी की भी समस्या
नगर में आसपास के ग्रामीण सालों से सब्जी बेचने के लिए आ रहे हैं। पूर्व में ये सब्जी विक्रेता सामुदायिक कें द्र की जमीन पर बैठते थे। अब यहां आवास बन जाने पर नगर परिषद ने इन्हें बस स्टैंड पर शिफ्ट कर दिया। यहां सब्जी विक्रेता धूप और बारिश में खुले में सब्जी बेचने को मजबूर है। प्रशासन ने सब्जी मंडी विकसित करने की दिशा में कोई सार्थक पहल अब तक नहीं की है।
कभी नहीं खुला पुस्तकालय
आजाद की स्मृति को संजोने के लिए करीब 15 साल पहले पुस्तकालय बनाने का प्रस्ताव बना था। आदिम जाति विकास विभाग के भवन में इसे खोला जाना था। हालांकि अब तक यह पुस्तकालय शुरू तक नहीं हो सका है।