सीएए पर पद्मश्री किरण सेठ ने कहा- अगर संवेदनशीलता नहीं होगी तो देश खत्म हो जाएगा; धर्म को बीच में लाना गलत

भोपाल . 42 साल पहले अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी से मैथमैटिक्स में पीएचडी के दौरान किरण सेठ ने एक सपना देखा था- युवाओं में अपनी कला, संगीत और संस्कृति के प्रति रुचि जगाएंगे। उन्होंने इस आंदोलन को नाम दिया स्पिक मैके यानी सोसाइटी फॉर द प्रमोशन ऑफ इंडियन क्‍लासिकल म्‍यूजिक एंड कल्‍चर अमंगस्‍ट यू‍थ। दिल्ली आईआईटी में मैथमैटिक्स के ऑनरेरी प्रोफेसर पद्मश्री किरण सेठ दो दिन के लिए भोपाल आए थे। इस दौरान उन्होंने देश के वर्तमान हालात, आज की जनरेशन, स्पिकमैके की 42 साल की यात्रा और शादी नहीं करने के बारे में  विस्तार से बातचीत की। उन्हीं के शब्दों में...



देश के वर्तमान हालात पर - हर चीज के दो पक्ष में होते हैं, मेरे विचार में केंद्र सरकार ने बहुत अच्छे काम किए हैं, जैसे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस। उन्होंने अपनी संस्कृति को दुनिया में प्रोजेक्ट किया है और कैसे अपने यहां बढ़ावा दिया गया, वह बहुत अच्छा है। लेकिन एक जगह मार खा गए, जब बीच में धर्म को ले आते हो, मैं ये नहीं कह रहा कि आप जानबूझकर धर्म को लाते हो। जैसे आपने बहुत ईमानदारी से कोई चीज कही, लेकिन उस पर कैसे रिएक्ट किया जा रहा है। ये देखना होगा। इसके बाद भेदभाव, हिंसा और टूट-फूट ये चीज नहीं होनी चाहिए। मैं ये नहीं कह रहा हूं कि ये चीज अच्छी है या बुरी। लेकिन इतनी संवेदनशीलता होनी चाहिए कि जो मैं आपको बोलूं, उसे वह कैसे लेंगे। ऐसा नहीं होना चाहिए कि जो मैं कहूं, वही सब ठीक है। मैंने आपकी संवेदनशीलता को नहीं पहचाना तो उसका फायदा नहीं और अगर संवेदनशीलता खत्म हो गई तो फिर तो देश खत्म हो जाएगा। सीएए बहुत अच्छा आईडिया है, खाली एक चीज और जोड़ देते कि इसमें कोई भी आ सकता है। क्यों नहीं भारत उन सभी को संरक्षण दे, जिन्हें दूसरे देशों में परेशान किया गया है।  


शादी और प्रेम के बारे में - मेरे दो फुल टाइम वेंचर हैं। एक है आईआईटी में पढ़ाना। मुझे साइंस एंड टेक्नालॉजी में बहुत रुचि है और ऐसा नहीं है कि मैं शास्त्रीय संगीत में डूबा हुआ हूं। जब मैं पढ़ता हूं ऑटिफिशियल इंटेलीजेंस के बारे में और मैथमैटिक्स में बहुत ज्यादा दिलचस्पी है। इसके साथ ही मेरी क्लासिकल संगीत में भी बहुत रुचि है तो अगर दो प्रेमी हैं तो तीसरा प्रेमी बनाएं, वह बहुत मुश्किल हो जाएगा। वक्त नहीं निकाल पाए या हमने प्रेम नहीं किया तो ऐसा नहीं है। हमने भी प्रेम किया है। जीवनभर का साथ नहीं चुन सका। अगर शादी कर ली तो बच्चों और पत्नी दोनों की जिम्मेदारी होती और हमारा परिवार तो बन गया था। ऐसे में एक और जिम्मेदारी लेने से बात नहीं बनती। एक लेजर बीम अप्रोच है, किसी भी चीज में अच्छा करना चाहते हैं तो एकाग्रता के साथ करना होगा, सिंगल प्वाइंट के साथ करना होगा।  


कोलंबिया में डागर बंधुओं को सुनना जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट - संगीत से मेरे परिचय के दौरान जो बीज मेरे मन में प्रस्‍फुटित हुआ, जो अहसास मुझे झंकृत कर गया, वही स्पिक मैके की नींव का आधार बना। शास्‍त्रीय संगीत का ये स्‍पर्श आईआईटी खड़गपुर के छात्र जीवन का था। न्‍यूयॉर्क की कोलंबिया विश्‍वविद्यालय में पीएचडी करने के दौरान मित्रों के साथ उस्‍ताद नसीर अमीनुद्दीन डागर और उस्‍ताद जि़या फरीदुद्दीन डागर के ध्रुपद गायन के कार्यक्रम में यूं ही चले गया। हम में से कोई भी ध्रुपद या संगीत की अन्‍य विधाओं के बारे में कुछ नहीं जानता था, लेकिन जब मैं कार्यक्रम में गया तो साधारण था, लौटा तो आलौकिक स्‍पर्श ने मुझे छू लिया था। जो कुछ मेरे मन में घटा वही अनुभव अन्‍य युवाओं के साथ साझा करने की इच्छा बलवती हो गई। जब हमने पहला संगीत कार्यक्रम किया तो इसमें मात्र 5 लोग शामिल हुए थे। यहीं, आंदोलन की नींव पड़ी।


आज की युवा पीढ़ी पर - आज की जनरेशन कई गुना होशियार है। ऐसा डॉर्विंस थ्योरी ऑफ एवल्युशन के कारण हो या कुछ और लेकिन युवा बहुत जागरूक हैं और जानते हैं लेकिन दो चीजों में मार खा गए हैं। एक- थोड़ा सा धैर्य। दूसरा- थोड़ा सा विश्वास। अगर ये दो चीजें उनकी जिंदगी में आ जाए तो आप देखेंगे कि वन-टू-वन कॉम्बिनेशन हो जाएगा। हमारे सूफी संत हैं, उनका कंट्रीब्यूशन रहा है कि जो दिखता है, उसे और आगे जाकर दिखाया। हमें ऋषि-मुनियों ने हमें सिखाया और दिखाया, लेकिन आज जो दिखता है, वही सही है।


जैसे- अगर गर्मी लगती है तो वेस्टर्न ने कैसे सोचा। उन्होंने पंखा बना दिया और ज्यादा लगती है तो एसी बना लिया। हमारे ऋषियों को भी गर्मी लगती थी, उन्होंने देखा कि आसपास की हवा गर्म है और उसका इंपल्स (आवेग) त्वचा से होकर दिमाग को बताता है तो उन्होंने सोचा कि अगर इस इंपल्स की प्रक्रिया को ही तोड़ दूं तो मुझे गर्मी नहीं लगेगी। उन्होंने प्राणायाम किया और योग किया और अपनी बॉडी को प्रयोगशाला बना दिया। प्रक्रिया लंबी है, लेकिन हमारी हैरिटेज बहुत साइंटिफिक है, वह अनुभव पर आधारित है। वहीं वेस्टर्न पूरा प्रयोग पर आधारित है। हमारी विद्या गुरुमुखी है।


स्पिकमैके की 42 साल के सफर पर - ये मैं नहीं कहूंगा कि हम इसमें कामयाब रहे हैं। कामयाबी तो नहीं कह सकते हैं। मैं ये कह सकता हूं कि 50-50 फीसदी चांस है। क्योंकि आजकल इतने नेगेटिव फोर्सेस हैं कि ऐसी चीजें दब जाती हैं। जो दिखाई देता है, वो पॉवरफुल हो जाता है, लेकिन जो नहीं दिखाई देता है, उसे देखने के लिए लोगों समय नहीं देना चाहते हैं, क्योंकि उसके लिए धैर्य और विश्वास की जरूरत होती है। ये नेक्स्ट जनरेशन पर निर्भर करता है कि किस तरफ इसे ले जाएं। हो सकता है कि हम कामयाब हों या बिलकुल नाकामयाब हो जाएं। 


स्पिकमैके के मकसद पर - स्पिक मैके की शुरुआत 1977 में आईआईटी, दिल्ली में हुई। स्पिक मैके का मकसद था छात्रों को देश के सर्वश्रेष्ठ कलाकारों के सीधे संपर्क में लाना और उन्हें भारतीय विरासत के विभिन्न पहलुओं के बारे में अवगत कराते हुए प्रेरणा देना। फिर हमें इंतज़ार होता की कब कलाकारों और कला के जादू से इन छात्रों के मन में कला के प्रति अनुराग और दिलचस्पी उजागर हो। इन गतिविधियों के द्वारा उन्हें उनके अंतरतम में बसे सत्व, रोंगटे खड़े कर देने वाले या आंखों से बरबस नीर बह निकलने वाले अनुभव अथवा 'मैं नहीं जानता कि वह क्या था, पर जो भी था अद्भुत था’ जैसी भावना के साथ फिर से जोड़ना ही हमारा असली ध्येय है।