अंबिकापुर । सरगुजा स्टेट के जमाने में स्थापित शासकीय जिला रघुनाथ अस्पताल अब शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय से संबद्घ हो गया है। पहले अस्पताल परिसर का आकर्षण अलग था, जो कालांतर में बदलते गया। अस्पताल के उन्नयन के साथ भवन में बदलाव के कारण यहां का ब्रिटिशकालीन आकर्षण गुम हो गया है। अस्पताल की स्थापना के बाद तत्समय यहां चीरघर की सुविधा नहीं थी। किसी का पोस्टमार्टम होना हो तो बाबूपारा में पांच एकड़ में बने चीरघर में जाना पड़ता था। कई बार दूरदराज के क्षेत्रों से आने वाले ग्रामीण चीरघर परिसर में ही शव की पहरेदारी करते रात बिताते थे। चीरघर के लिए तत्समय स्वीपर बनारस और ओडिशा से लाए गए थे।
बाबूपारा में स्थित चीरघर में मुर्दों को रखने के कारण लोग इसे भूत बंगला की संज्ञा देते थे। बाद में चीरघर को शंकरघाट में शिफ्ट किया गया। पीएम के लिए चिकित्सक निज साधनों से यहां तक पहुंचते थे। पोस्टमार्टम के लिए स्कूटर से शंकरघाट जाने के लिए निकले एक डॉक्टर का एक्सीडेंट होने के बाद लंबी दूरी निजी वाहन से करने में चिकित्सक कतराने लगे। इनके द्वारा अस्पताल परिसर में ही चीरघर खोलने की मांग की गई। फलस्वरूप लगभग 18-19 वर्ष पहले पोस्टमार्टम व मर्च्युरी के लिए एक भवन का निर्माण अस्पताल परिसर में हुआ, जहां शव को रखने, पोस्टमार्टम की सुविधा मिलने लगी। शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय से अस्पताल के संबद्घ होने के बाद नार्म्स के अनुरूप नए शव परीक्षण गृह का यहां निर्माण सीजीएमएससी लिमिटेड की ओर से कराया गया है, जिसका लोकार्पण 28 सितंबर 2019 को प्रदेश के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के मंत्री टीएस सिंहदेव ने किया है।
ठेले-रिक्शे में ले जाते थे शव
स्टेट टाइम का दौर ऐसा था कि अस्पताल से पोस्टमार्टम के लिए शव को बाबूपारा या शंकरघाट तक ले जाने के लिए लोग किसी साधन और सुविधा का इंतजार नहीं करते थे। शव को खुले में ठेले, रिक्शे में लादकर ले जाना पड़ता था, इसके बाद पोस्टमार्टम हो पाता था। उस दौर में शवों को ढोकर लाने-ले जाने के लिए मुहमांगी मजदूरी देनी पड़ती थी। कई बार परिजन साइकिल में खाट, पटरे को बांधकर शवों को घर तक ले जाते थे।
अपवाद नाम है भूत बंगला
राजपरिवार के करीबी गोविंद शर्मा बताते हैं कि पहले शहर की सीमा बाबूपारा के पहले खत्म हो जाती थी। सरगुजा महाराज रघुनाथ शरण सिंहदेव ने पांच एकड़ में चीरघर का निर्माण कराया था। बाद में इसे हटा दिया गया। वर्तमान में यहां भारत संचार निगम लिमिटेड का संभागीय कार्यालय संचालित हो रहा है। चीरघर के लिए तत्समय बनारस और ओडिशा से स्वीपर लाए गए थे। बनारस के रामधारी इनमें एक था, जो महज 14-15 वर्ष की आयु से पोस्टमार्टम कर रहा था। पोस्टमार्टम करते वह इतना जानकार हो गया कि चिकित्सक की सिर्फ कलम चलती थी, पूरी जानकारी रामधारी देता था। ओटी तक में वह चिकित्सकों का हाथ बंटाता था। अस्पताल परिसर में टीबी अस्पताल के पीछे आज भी एक बंद पड़ा शिव मंदिर है, जहां रामधारी रोज पूजा करता था।
अपेंडिक्स का किया ऑपरेशन, बच गई जान
गोविंद शर्मा बताते हैं कि रामधारी की उम्र महज 15 वर्ष थी, तभी अपेंडिक्स का एक मरीज आया। ओटी में सहयोग के समय वह रोजाना चिकित्सकों की शल्य गतिविधि को देखता था। पीड़ित जब आया उस समय चिकित्सक नहीं थे। उसकी पीड़ा को वह नहीं देख पाया और खुद अपेंडिक्स का ऑपरेशन कर दिया। बात लीक हुई, तो कार्रवाई का भय सता रहा था। जब चिकित्सकों को पता चला कि ऑपरेशन से अपेंडिक्स पीड़ित की जान बच गई, तो पीठ थपथपाकर उसकी हौसला आफजाई की। रामधारी के दो पुत्र हिरण और काली थे, इनमें से एक की मौत हो चुकी है। एक पुत्र बिश्रामपुर कॉलरी में काम करते वहीं शिफ्ट हो गया। रामधारी की पत्नी सुरसोथ भी वार्ड ब्वाय का काम करते डिलेवरी कराने में दक्ष हो गई थी।
सुनील का पीएम गुरु है रामधारी
चीरफाड़ में किशोर अवस्था से योगदान दे रहे सुनील ने अब तक अनगिनत पोस्टमार्टम कर चुका है। मेडिकल कॉलेज अस्पताल परिसर में स्थित टीबी अस्पताल के पीछे बंद पड़े शिव मंदिर परिसर में परिवार के साथ रहने वाले अपने गुरु रामधारी से सुनील पोस्टमार्टम की विधा सीखा। गुरु की मौत के बाद ढाई दशक से अधिक पोस्टमार्टम में बिता चुके सुनील का कहना है कि पहले जयनगर, दरिमा, लखनपुर, सिलफिली, धौरपुर सहित अन्य क्षेत्रों से पीएम के लिए शव लेकर लोग आते थे। बाल्टी में पीएम के लिए छेनी-हथौड़ी, चाक, सुई-धागा लेकर रिक्शे में बाबूपारा के चीरघर, बाद में शंकरघाट जाना पड़ता था। कई बार शव की दुर्दशा देखकर परिवार के सदस्य हाथ लगाने से झिझकते थे। ऐसे शवों की चीरफाड़ के बाद सिलाई करने वाला सुनील मुंह में सिगरेट और हाथ में औजार लिए पूरी तल्लीनता से इस काम को करता है।
15 वर्ष में 7694 पीएम-
वर्ष-पोस्टमार्टम
2005 385
2006 278
2007 326
2008 396
2009 442
2010 507
2011 474
2012 585
2013 573
2014 652
2015 584
2016 582
2017 629
2018 657
2019 624
योग- 7694
नोट-2020 में अब तक लगभग 125 पोस्टमार्टम हो चुके हैं।